यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल “Indian Myanmar earthquake survivors face increased hardships” लेख का है, जो सात अप्रैल 2025 को प्रकाशित हुआ थाI
28 मार्च को म्यांमार में आए विनाशकारी भूकंप के बाद, जैसे जैसे विनाश की तस्वीर साफ़ हो रही है, बचाव और मदद की कोशिशें मौजूदा हालात की वजह से बाधित हो रही हैं। सोमवार तक, मरने वालों की आधिकारिक संख्या 3,600 से पार पहुंच गई है, लेकिन स्थानीय अख़बारों ने अपने सूत्रों से इकट्ठा की गई जानकारी के अनुसार मरने वालों की संख्या 5,330 और घायलों की संख्या 7,108 बताई है।
म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले के पास, सैगेंग फ़ॉल्ट पर 7.7 तीव्रता का भूकंप आया था। इस भूकंप ने पूरे देश के शहरों और कस्बों को प्रभावित किया। दुनिया के सबसे ग़रीब इस देश में भूकंप के कारण सड़कों और पुलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है और इसकी वजह से सबसे अधिक प्रभावित इलाक़ों तक मदद पहुंचने में देरी हो रही है।
सप्ताहांत के दौरान म्यांमार में भारी बारिश और आंधी आई, साथ ही यहां का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इसकी वजह से भूकंप से बचे लोगों में कॉलरा जैसी बीमारियों के फ़ैलने का ख़तरा बढ़ गया है क्योंकि अधिकांश सर्वाइवर टेंटों या सड़कों पर खुले में रहने को मजबूर हैं। पूरे देश में हज़ारों इमारतें ढह गईं और पुल और राष्ट्रीय राजमार्गों को भारी नुकसान पहुंचा है। सैगेंग में लगभग 80 प्रतिशत इमारतें धाराशाई हो गईं। यह मांडले से सटा शहर है और भूकंप का केंद्र था।
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में 36 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। इनमें से अधिकांश वे लोग हैं जो एक बहुमंजिली निर्माणाधीन इमारत के गिरने के दौरान वहां मौजूद थे। इस जगह पर 58 लोग अभी भी लापता हैं। पूरे देश में अन्य शहर और कस्बे भी प्रभावित हुए हैं, जिनमें चियांग माई भी शामिल है। सैकड़ों घर, स्कूल, अस्पताल और अन्य इमारतों को नुकसान पहुंचा है। भूकंप के झटके वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी जैसे दूर दराज़ इलाक़े तक महसूस किए गए, जहां इमारत खाली कराए जाने के दौरान एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
म्यांमार में ऐसे कई इलाक़े हैं जो अन्य इलाक़ों से कट गए क्योंकि वहां बिजली चली गई और संचार ठप पड़ गया। हो सकता है कि कुछ समय तक मौतों और ढांचे को हुए नुकसान का सही आंकड़ा न पता चल पाए, लेकिन यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुमानों से पता चलता है कि इस प्राकृतिक आपदा में कम से कम 10,000 लोगों की मौत होने की आशंका है।
ज़िंदा बच गए लोग और बचावकर्मियों ने भयावह हालात के बारे में बताया है। मरने वालों के शवों को सामूहिक कब्रों में दफ़नाया जा रहा है। सैगेंग के रहने वाले एक सोशल वर्कर गो ज़ेयार ने सीएनएन को बताया, 'पूरे कस्बे में लाशों की दुर्गंध फैली हुई है।' बाद में आने वाले छोटे छोटे भूकंप के झटकों (ऑफ़्टर शॉक्स) और इमारतों के गिरने के डर का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'लगभग पूरा का पूरा कस्बा सड़कों, प्लेटफ़ॉर्मों या फ़ुटबॉल मैदानों में रह रहा है और वहीं सो रहा है, मैं भी ऐसा ही कर रहा हूं क्योंकि यह बहुत डरावना है।'
चीन, रूस, भारत और थाईलैंड समेत कई देशों ने बचाव टीमों को म्यांमार भेजा है। हालांकि अमेरिका की फ़ासीवादी ट्रंप सरकार ने कुछ भी नहीं किया। मौजूदा समय में, वॉशिंगटन ने 90 लाख डॉलर की मदद की घोषणा की है, जोकि अमेरिकी मिलिटरी पर खर्च की जाने वाली राशि के मुकाबले एक बूंद के बराबर भी नहीं है।
यही नहीं, ट्रंप सरकार ने भूकंप आने के कुछ ही समय बाद, मानवीय सहायता पहुंचाने वाली संस्था यूएस एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) को बंद कर दिया है और इसके कर्मचारियों को छंटनी का नोटिस थमा दिया है। तीन यूएसएड वर्करों को उस समय बर्ख़ास्तगी का नोटिस मिला जब वे म्यांमार में काम कर रहे थे।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने पिछले शुक्रवार को ही इस आलोचना का ये कहते हुए खंडन किया कि वॉशिंगटन की ”ज़रूरतें” और ”प्राथमिकताएं” कुछ और हैं। उन्होंने कहा, 'हम पूरी दुनिया में इन ग्लोबल एनजीओ को फ़ंड नहीं करने जा रहे हैं, जो अमेरिकी डॉलर बर्बाद कर रहे हैं। हम ये नहीं करने जा रहे हैं...हम आगे आएंगे और मदद करेंगे लेकिन और भी धनी देश हैं, उन्हें आगे आना चाहिए और मदद करनी चाहिए।'
ट्रंप सरकार का रुख़, अतीत के तथाकथित ”मानवीय” अमेरिकी प्रशासनों के रुख़ से पलटाव नहीं है। यूएसएड जैसी एजेंसियां हमेशा से ही, ”सॉफ़्ट पॉवर” के माध्यम से पूरी दुनिया में अपने प्रभाव को फैलाने के लिए वॉशिंगटन का हथियार रही हैं। हालांकि अमेरिकी साम्राज्यवाद, अब यूएसएड जैसी एजेंसियों द्वारा प्रदान की जाने वाली मानवीय सहायता के नकाब को त्याग रहा है। इस संस्था को बंद करने का ट्रंप सरकार का क़दम दिखाता है कि अब अमेरिका इन तरीक़ों से ऊब चुका है और इसकी बजाय वह अब धमकियों, आर्थिक जंगों और सैन्य ताक़त पर ज़्यादा भरोसा कर रहा है।
दूसरी ओर म्यांमार सरकार भी आपदा से निपटने के लिए बहुत अर्थपूर्ण मदद को संगठित करने में विफल रही है। जो लोग मलबे से ज़िंदा लोगों को बचाने और उन्हें निकालने की कोशिश में लगे हुए हैं वे आम नागरिक हैं जबकि राहत और बचाव कार्यों में हिस्सा लेने के लिए सेना को तैनात नहीं किया गया है। इससे उलट लोगों ने शिकायत की है कि मौके पर मौजूद सेना और पुलिस के लोगों ने बहुत कम मदद की, इनमें कुछ तो अपने फ़ोन का इस्तेमाल करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं।
म्यांमार में इस समय बहुत ही अलोकप्रिय मिलिटरी जुंटा का शासन है, जिसने फ़रवरी 2021 में तख़्तापलट के माध्यम से सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था। इसने सत्ता से बेदखल सरकार से जुड़े सशस्त्र बलों के गठबंधन नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) के साथ चार साल से खूनी गृह युद्ध छेड़ रखा है। एनयूजी का सैगेंग इलाक़े के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा है। पिछले हफ़्ते ही मानवाधिकार मामलों पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के हाई कमिश्नर ने कहा कि अपने नियंत्रण से बाहर वाले इलाक़ों तक मदद पहुंचने में जुंटा सरकार बाधा पैदा कर रही है।
देश में कई दशकों से चला आ रहा संघर्ष खुले युद्ध में तब्दील हुआ है। भूंकप के पहले ही, क़रीब 35 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे और देश की 5.4 करोड़ आबादी में से 1.99 करोड़ लोगों को मदद की ज़रूरत है।
युद्ध की वजह से बचाव कर्मचारियों की कमी पड़ गई है क्योंकि अधिकांश युवा लोग अपने घर बार छोड़ चुके हैं। सैगेंग के निवासी 20 साल के आए मोए ने गार्डियन को बताया, 'मुख्य अस्पताल में, मरीजों के अगल बगल में लाशें पड़ी हुई हैं और वहां के हालात नियंत्रण से बाहर हैं। वहां काम करने वाले लोगों की भारी कमी है और जो हैं उनमें युवा लोग न के बराबर हैं- कुछ लोग जंगलों में भाग गए हैं, कुछ लोग देश छोड़कर जा चुके हैं।' जो लोग पलायन कर चुके हैं उन्हें डर है कि अगर वे किसी तरह की मदद देने के लिए लौटे भी तो उन्हें ख़तरे का सामना करना पड़ सकता है।
इस बात का ख़तरा है कि जो नौजवान लौटेंगे उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा और उन्हें सेना में ज़बरदस्ती भर्ती कर लिया जाएगा। मांडले में एक वालंटियर बचाव कर्मी फ़ोए थार ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, 'हमें और अधिक मदद की ज़रूरत है, लेकिन डर से हम कदम नहीं बढ़ा पा रहे हैं।'
पिछले बुधवार को ही जुंटा के स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल ने 20 दिन के संघर्ष विराम का एलान किया था। हालांकि सेना और विपक्षी ग्रुपों ने एक दूसरे पर हमले जारी रखने के आरोप लगाए हैं। मिलिटरी ने गुरुवार और शुक्रवार को कारेनी और शान प्रांतों में विपक्षी ठिकानों पर बमबारी की।
जुंटा की मुख्य चिंता है सत्ता पर ढीली पड़ती जाती पकड़ को मजबूत बनाना और उसे डर है कि अगर वह विपक्षी और उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान को कम करता है तो पूरे देश पर उसकी पकड़ पर उल्टा असर पड़ेगा। दूसरी तरफ़, जुंटा के ख़िलाफ़ आक्रोश भी बढ़ रहा है। जिस पैमाने पर विनाश हुआ है और इससे निपटने में सरकार ने जो नाकाबिलियत दिखाई है उससे सामाजिक ग़ुस्सा फूट सकता है।